Ek Roz Life Shayari

ज़रा सी चोट लगी, कि चलना भूल गए,
शरीफ लोग थे, घर से निकलना भूल गए,

तमाम शहर में घूमे किसी ने नहीं पहचाना,
हम एक रोज़ जो चेहरा बदलना भूल गए!