ज़िन्दगी का सफ़र – हिंदी शायरी

क्या सफ़र है ये ज़िन्दगी का या कोई इमितिहान है मेरा,
चली जा रही हूँ, दिये जा रही हूँ।

ना मंज़िल का पता है, ना परिणाम का,
फिर भी जिए जा रही हूँ, उम्मीद किये जा रही हूँ।

कहाँ पहुँचूंगी इस राह में, क्या पाऊँगी इस इम्तिहान से,
इसी सोच में अब मैं नादानियां किये जा रही हूँ।

क्या सफ़र हैं ये ज़िन्दगी का या कोई इम्तिहान है मेरा,
चली जा रही हूँ, दिए जा रही हूँ।

– मोनिका